बैरवा जाति ,बैरवा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि , पशुपालन और भवन निर्माण से जुड़े कार्य ही रहा है। कृषक और पशुपालक होने के कारण ये मेहनतकश भी माने जाते हैं। वर्तमान में देशभर में बैरवा समाज के लोग हर प्रांत और कस्बे में मिल जाएंगें।

बैरवा जाति / समाज मूलतः राजस्थान की मूल निवासी मानी जाती है। हिन्दू धर्म में बैरवा समाज को अनुसूचित जाति वर्ग में माना जाता हैं और कहीं-कहीं ये पिछड़ी जाति के अन्तर्गत आते हैं।

बैरवा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि , पशुपालन और भवन निर्माण से जुड़े कार्य ही रहा है। कृषक और पशुपालक होने के कारण ये मेहनतकश भी माने जाते हैं।  वर्तमान में देशभर में बैरवा समाज के लोग हर प्रांत और कस्बे में मिल जाएंगें। लेकिन कहा जाता है कि बैरवा समाज के लोग राजस्थान से ही खाने – कमाने के लिए दूसरे प्रदेशों में गए थे और अब वहीं के होकर रह गए। वर्तमान में देशभर में बैरवा समाज की आबादी करीब 11 करोड़ बताई जाती हैं। अकेले राजस्थान में बैरवा समाज 40 से 45 लाख की संख्या में हैं । राजस्थान की विधानसभा की 200 सीटों में से करीब 70 सीटों पर बैरवा समाज के लोगों के वोट जीत – हार का निर्णय करते हैं। प्रत्येक विधानसभा में कांग्रेस, बीजेपी, सपा और दूसरे दलों में 10 से 13 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचते हैं। अब तक का राजस्थान का कोई सा ही  मंत्री मंडल ऐसा रहा होगा जिसमें दो से तीन मंत्री बैरवा समाज से लिए जाते रहे  हैं। स्वर्गीय बनवाली लाल बैरवा राजस्थान के उप मुख्यमंत्री रहे हैं।

बैरवा समाज में एकल विवाह ही प्रचलन में हैं। हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत लोग विवाह करते हैं। पूर्व में लड़के या लड़की की रिश्तेदार शादियां तय करके विवाह करा देते थे। लेकिन अब समय के साथ बदलाव आया हैं। बैरवा समाज के युवक- युवतियां एक – दूसरे को देखने समझने के बाद ही विवाह के लिए हां करने पर ही परिजन उनका विवाह करते हैं। बैरवा समाज में दहेज प्रथा का भी प्रचलन हैं। लोग अपनी हैसियत के अनुसार लड़के वाले को उपहार देता हैं। नाता प्रथा का भी बैरवा समाज में प्रचलन हैं। पहली पत्नी के मरने  या तलाक देने पर दुसरा विवाह करने की छूट हैं।  बैरवा समाज में सामूहिक विवाह भी खूब होने लगे हैं।  विवाह के लिए बैरवा समाज में स्वंय का, मां , दादी और नानी का गौत्र टालने की परम्परा हैं।  हालांकि अब कई स्थानों पर नानी का गौत्र  नहीं मानते । सामाजिक मंचों से भी कई बार खूद का मां और दादी का ही गौत्र शादियों में टालने की बात उठने लगी हैं। समाज में बहु पति या बहु पत्नी विवाह  का प्रचलन नहीं हैं।  विवाह हिन्दू रिति रिवाज से होते हैं। विवाह के दौरान भात भरने , पुत्र होने पर जामणा भरने का रिवाज हैं। लेकिन इस तरह के रिती रिवाजों का अधिकांश लोग विरोध करते हैं। कुछ दकियानूसी लोग ही जामणा, मांडाचपड़ी के रिवाज निभा रहे हैं। अधिकांश तो इन्हें मानते भी नहीं हैं।

बैरवा समाज में रिती रिवाज के नाम पर हिन्दू धर्म की सभी रिती रिवाज मानते हैं। विवाह के समय  लग्न भेजना, टीका करना , सगाई करना, चाक –भात, साकड़ी विंधायक और कपड़ों का लेन देन करने और रुपये पैसे देने की रिवाज हैं।  विवाह में सात फेरे लेने और सनातन धर्म का पालन करना श्रेष्ठ माना जाता हैं। समाज में आज भी मृत्यु भोज का रिवाज हैं। हालांकि अब ये सीमित हो गया हैं। कुछ लोग इसे सिंबोलिक करने लगे हैं। टीके पर 101 रुपये देने का रिवाज बढ़ने लगा हैं। तीय की बैठक और अन्य रितियां अभी भी चल रही है। धीरेः धीरे इसमें सुधार  हो रहा है। खास तौर पर युवा पीढ़ी इन सब पारंपरिक रिति- रिवाजों के खिलाफ हैं। समाज में पहले विवाह का लग्न एक माह फिर 15 दिन और उसके बाद 7 या 8 दिन का भेजा जाने लगा था। अब ये घटकर 3 या 5 दिन का हो गया। लोग अब विवाह भी एक ही दिन में सम्पन्न करने लगे हैं।  इसका प्रचलन अधिक से अधिक बढ़ने लगा हैं। लेकिन समाज में दहेद प्रथा बढ़ना चिंता का विषय हैं। विवाह के दौरान पंगत और बफर दोनों ही सिस्टम हैं। ये व्यक्ति की हैसियत के अऩुसार होता हैं। शहरों में शादियां गार्डन में तो कच्ची बस्तियों और गांवों में घर के बाहर ही शादियां होती हैं। शादियों में शाकाहारी खाना ही बनाया जाता हैं। जहां शुद्दता का पूरा ख्याल रखा जाता हैं।

बैरवा समाज के लोग हिन्दू धर्म के सभी देवी- देवताओं की पूजा पाठ करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा महर्षि बालिनाथ जी को मानते हैं। महर्षि बालीनाथ जी मानने वाले ही बैरवा है। लेकिन फिर भी बैरवा समाज के लोगों में भैरव, पितृ ,भोमिया, शहीद,  सातों बहिनें, दुर्गा माता, वैष्णों माता, काली माता, बालाजी, शिवजी , गंगा मैय्या,  तेजाजी महाराज, बाबा रामदेव की पूजा पाठ अधिक की जाती हैं। गांवों में लोग बीमार होने पर डाक्टर के पास जाने के बजाय आज भी पहले  भैरु – भोमिया या माता के थड़े पर जाना पसंद करते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों  में लोगों का इनसे मोह भंग होने लगा है। और अब बैरवा समाज के लोग राधा स्वामी, धन- धन सतगुरु, जय गुरुदेव, निरंकारी बाबा , मुरारी बापू, के शिष्य बन गए।  बैरवा समाज की आधी से ज्यादा आबादी इन सतगुरुओं को मानने लगी हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव भी लोगों पर पड़ा। लोग शाकाहार को अपनाने लगे है। अब लोगों पर बौद्ध धर्म का प्रभाव भी पड़ने लगा हैं। कुछ लोगों ने हिन्दू धर्म की भेदभाव की नीतियों से परेशान होकर कई स्थानों पर बौद्ध धर्म भी अंगीकार कर लिया हैं। कई लोग बौद्द का प्रचार – प्रसार करने में लगे हैं। लेकिन धर्म के मामले में बैरवा समाज के लोग स्थानीय आधार पर देवी- देवताओं की पूजा पाठ करते हैं। लेकिन बाबा रामदेव को सर्वाधिक लोग मानते हैं। इसके पीछे रामदेव की एससी वर्ग के लोगों के लिए किए गए काम हैं। लोगों में संत – महात्माओं का प्रभाव लगातार बढ़ रहा हैं। इन संत – महात्माओं की शिक्षा का ही असर है कि बैरवा समाज के लोग रुढियों और परम्पराओं से दूर हो रहे हैं। समाज में शिक्षा का असर बढ़ रहा हैं। युवा पीढी नशे से भी दूर हो रही हैं। शाकाहार बढ़ने से लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा हैं। लोगों में अब ऱाधा स्वामी, धन- धन सतगुरु, निरंकारी , जय गुरुदेव जैसे संत –महात्माओं का प्रभाव बढ़ा हैं। लाखों लोग इनके अनुयायिय बन चुके हैं।

बैरवा समाज के लोग बाबा साहेब के साथ – साथ महर्षि बालिनाथ जी के फालोअर हैं। बैरवा समाज के लोगों में महर्षि बालिनाथ जी के प्रति अटूट श्रद्धा हैं। क्योंकि बैरवा समाज में  सामाजिक चेतना का काम आजादी से भी पहले बालिनाथ जी महाराज ने शुरु किया था। उनका जन्म 9 मार्च 1870 में वर्तमान में दौसा जिले की लालसोठ तहसील के मंडावरी गांव में हुआ था। उन्होंने गृहस्थ आश्रम छोड़कर काशी में शिक्षा - दिक्षा ग्रहण करने के बाद समाज सुधार का काम किया था। बताया जाता है कि उन्होंने सबसे पहले 1922 में सबसे पहले उज्जैन से समाज सुधार का बीड़ा उठाया था। इसलिए बैरवा समाज के लोग उन्हें सबसे ज्यादा मानते हैं। उऩ्होंने समाज में व्याप्त मांसाहार और नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने ने ही बेगारी प्रथा और जागीरदारों से मुक्ति के लिए अभियान चलाया था। उनकी शिक्षा का असर आज भी देखा जा सकता है। बैरवा समाज के लोगों की  रविदास जी महाराज, कबीर दास जी , महात्मा ज्योबा फूले, सावित्री बाई और रामदेव जी महाराज के प्रति अटूट श्रद्दा हैं।

बैरवा समाज के लोगों का पहनावा  गांवों में पुरुषों का धोती-कमीज और चूंदड़ी या सफेद साफे और पेंट - शर्ट पहनते हैं। वहीं महिलाएं  गांवों में घाघरा – लूगड़ी  और साड़ी पहनती हैं। लेकिन अब गांवों में भी बैरवा समाज के लोग धोती- कमीज, पेंट – शर्ट –टी शर्ट , कोट, पेंट और सभी तरह के वस्त्र पहनते हैं। गांवों में जो युवाओं में जो धनाढ़य होते हैं कानों में सोने की मुर्कियां पहनने का चलन है।  महिलाओं में घाघरा – लूगड़ी के साथ साड़ी, लड़कियां सलवार सूट और अन्य कपड़े पहनती हैं।  शादीशुदा  महिलाएं पैरों  और हाथों में चांदी  के कड़े, कमर में कनकती, गले में मंगलसूत्र- पुराने समय में खुंगाली, हाथ में कड़े नेवरे, कंगन कानों में बालियां, नाक में नथ – टीका  चूड़े पहनती हैं।  बैरवा समाज के लोग आज भी समूह में ही रहना पसंद करते हैं। जहां चार – पांच परिवार समाज के होंगे वहीं पर रहना पसंद करते हैं।  शहरों में कच्ची बस्तियों में कालोनियों में फ्लैट्स विलास में भी रहने लगे हैं। लेकिन साफ – सुथरा रहना सबकी आदत में शुमार हैं। साफ – सफाई से रहना इस समाज के लोगों  का सलग हैं। रहन – सहन व्यक्ति की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता हैं।

Bairwa Samaj ek Najar

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बैरवा समाज में शादी के रिश्ते ढूंढ रहे हैं ? कोई बात नहीं , बैरवा व्याह है ना वो भी फ्री अभी ऐप्प डाउनलोड करे

राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) में सफल हुए बैरवा समाज के सभी भाइयों,, बहनों को उज्ज्वल भविष्य की कामनाओं के साथ हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

बैरवा दिवस समारोह का आयोजन जयपुर मे

बैरवा समाज़ के 10वी के छात्रों की मेरिट सूची Top 10 Rajasthan Board Result

REET 2024-25 Admit card Exam Date: इस दिन आयोजित होगी REET 2024 परीक्षा, लेटेस्ट अपडेट्स

🍁जिला बैरवा अधिकारी कर्मचारी विकास संस्था टोंक के सम्मान समारोह

सभी विभागों में रोजगार समाचार सरकारी नौकरी देखसभी के लिए आवेदन का

टोंक जिले के सर्वाधिक कामयाब कांग्रेस लीडर थे बनवारी लाल बैरवा